बुधवार, 24 दिसंबर 2014

प्रासादों के आठ शिखर : प्रादेशिक आधार पर नामकरण

हमारे यहां प्राचीन शिल्‍पशास्‍त्रों में प्रासादों के आठ प्रकार के शिखरों के नाम उनकी ऊंचाई के अनुसार मिलते हैं। यह संयोग ही है कि 10वीं शताब्‍दी तक जिन-जिन प्रदेशों में जो जो शिल्‍पी अपनी परंपरा में जिस किसी शैली और सुविधा के अनुसार शिखर का निर्माण करते थे, उनका नामकरण उसी आधार पर हुआ।

प्रासादों के प्रादेशिक स्‍वरूप के अध्‍ययन के लिए ये नाम बहुत ही उपयोगी हैं। इनमें उस क्षेत्र के प्राचीन शिल्‍प स्‍वरूपों काे भी खोजा जा सकता है। यही नहीं, यह परंपरा वहां मौजूद प्रासादों की परंपरा की परिचायक भी हैं- पांचालं चापि वैदेहं मागधं चापि कौरवम्। कौसलं शौरसेनं च गान्‍धारावन्तिकं तथा।। यथाक्रमेण नामानि ज्ञातव्‍यानि विचक्षणै:।। (मयमतं 18, 10-11 एवं शिल्‍परत्‍नम् 32, 7-8) ये नाम हैं -

  • 1. पांचाल - पंचाल देश में बनने प्रासादों के शिखर,

  • 2. वैदेह- वैदेह के आसपास बनने वाले मंदिरों के शिखर,

  • 3. मागध - मगध के परिक्षेत्र में निर्मित होने वाले प्रासादों के शिखर,

  • 4. कौरव - कुरूक्षेत्र के समीपवर्ती इलाकों में बनने वाले मंदिरों का शिरोभाग,

  • 5. कौसल - कौसल, अवध-अयोध्‍या के इलाके में बनने वाले प्रासादों का शिखर स्‍वरूप,

  • 6. शौरसेन - मथुरा, इंद्रप्रस्‍थ के आसपास बनने वाले प्रासादों के शिखर रूप,

  • 7. गान्‍धार - अफगानिस्‍तान के आसपास के इलाके के प्रासादों के शिखर,

  • 8. आवन्तिक - उज्‍जैन, मालवा के आसपास के इलाकों में बनने वाले मंदिरों के शिखर,

ये शिखर प्राय: आनुपातिक ऊंचाइयां लिए होते थे। यह ऊंचाई विस्‍तार से क्रमश: 3 :7, 4 :9, 5 : 11, 6 : 13, 7 : 15, 8 : 17 अथवा इससे आधे अनुपात में भी होती थी। ये आठ शिखर आठों ही आनुपातिक मान से तैयार होते थे। संयोगवश यदि कहीं कोई पुराने प्रासाद का शिखर बचा हो तो इस प्रमाण का अध्‍ययन किया जा सकता है। इनके अपने तलच्‍छन्‍द विधान भी रहा है। (जैसा कि चित्र में दिखाया गया है) यह जिक्र.. फिर कभी।

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